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चक्रवर्ती महावीर स्वामी भारत की आध्यात्मिक भूमि पर अवतरित होने वाले, एक अमूल्य, दैवीय रत्न थे जिन्होंने अहिंसा के माध्यम से सम्पूर्ण विश्व पर विजय प्राप्त की थी| जैन धर्म के अनुसार वे हमारे काल के २४ तीर्थंकरों में अंतिम तीर्थंकर भी थे। ऐतिहासिक रूप से, उनका काल छठी शताब्दी बी. सी. ई. में निर्धारित किया गया है| इन शताब्दियों में भारत के अनगिनत विद्वान शाश्वत सत्य की खोज में संलग्न थे| वर्धमान महावीर के जीवन की कथा आम तौर पर पञ्च कल्याणक के संदर्भ में सुनाई जाती है। जैन धर्म के दो प्रमुख मतों- दिगम्बर और श्वेताम्बर की मान्यताओं के अनुसार, पारम्परिक रूप से उनकी जीवनी के दो संस्करण प्रचलित हैं|
गर्भ कल्याणक
श्वेताम्बर मत के अनुसार सर्वप्रथम, एक धर्मपरायण ब्राह्मण स्त्री देवानंदा, ने महावीर को गर्भ में धारण किया था| उस समय उन्होंने १४ अद्भुत स्वप्न देखे थे। किन्ही कारणों से, शक्र यानि इन्द्र ने अपने सेनापति को आदेश दिया कि वे गर्भपरिवर्तन कर, महावीर के भ्रूण को इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ की पत्नी त्रिशला के गर्भ में स्थापित कर दें। जब वर्धमान के भ्रूण को त्रिशला ने धारण किया तो उन्होंने भी वही १४ अद्भुत स्वप्न देखे, जो देवानंदा ने देखे थे। दिगम्बर मत के अनुसार, महावीर स्वामी माता त्रिशला के गर्भ में ही अवतरित हुए थे| उस समय उन्होंने १६ दिव्य स्वप्न देखे थे, जो महावीर के आने का शुभ संकेत थे| विद्वानों ने उन स्वप्नों की व्याख्या कर भविष्यवाणी की कि वीरों में वीर, महावीर के आगमन का समय आ गया था|
जन्म कल्याणक
वर्धमान महावीर का जन्म वैशाली गणतंत्र में चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को हुआ था। आज भी इस शुभ दिन पर महावीर जयन्ती का पर्व मनाया जाता है| कहा जाता है कि असंख्य देवी-देवताओं ने तीर्थंकर के आगमन का उत्सव धूम-धाम से मनाया था और शक्र, आदि दैवीय शक्तियों ने उनके अलौकिक जन्माभिषेक में भाग लिया था।
दीक्षा कल्याणक
बचपन से ही, महावीर का मन वैराग्य की भावना से ओत प्रोत था| अपनी समस्त भौतिक संपत्ति दान कर, एक वर्ष से अधिक समय तक उन्होंने संन्यास लेने की तैयारी की । तदनन्तर ३० वर्ष की आयु में, मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी को, महावीर स्वामी ने चंद्रप्रभा नामक एक दिव्य पालकी में बैठकर, तपोवन के लिए प्रस्थान किया| अपने राजसी वस्त्र- आभूषण त्यागकर, अपने केश को पाँच मुट्ठी में तोड़कर, वे निर्ग्रंथ हो गये| दीक्षा लेने के बाद, वर्धमान महावीर ने अगले १२ वर्षों तक कठोर तपस्या की | उन १२ वर्षों में उन्होंने असंख्य असह्य कष्ट एवं घोरातिघोर वेदनाएं सहन करीं परंतु अपने पथ पर अडिग रहे।
केवल ज्ञान कल्याणक
४३ वर्ष की आयु में महावीर ने ऋजुबालिका नदी के तट पर एक शाल वृक्ष के नीचे केवल ज्ञान प्राप्त किया| तत्पश्चात, इंद्रादि देवताओं द्वारा निर्मित, दिव्य एवं सुसज्जित समवसरण में देवों, मनुष्यों और पशुओं सहित, सभी प्राणियों को उन्होंने अपना प्रथम उपदेश (देशना) दिया। अगले ३० वर्षों तक, भगवान महावीर ने मानव मात्र के कल्याण हेतु अनेक स्थानों पर विहार किया| उनके द्वारा प्रतिपादित रत्नत्रय – सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान एवं सम्यक चरित्र या आचरण के योग से ही हम मोक्ष के मार्ग की ओर अग्रसर होते हैं|
मोक्ष कल्याणक
भगवान महावीर ७२ वर्ष की आयु में कार्तिक कृष्ण अमावस्या को बिहार के पावापुरी में कर्मचक्र के बंधनों से मुक्त हो गये और उन्होंने मोक्ष (निर्वाण) प्राप्त किया। जैन मतानुसार उनकी सिद्ध आत्मा ब्रह्माण्ड के शीर्षस्थ स्थान, सिद्धशिला के परे विराजमान है| महावीर स्वामी के द्वारा प्रतिपादित चिरकालीन सिद्धान्त, अहिंसा का उनका दिव्य संदेश और उनकी सर्वत्र व्याप्त आध्यात्मिक ज्योति, अनंतकाल तक, इस विश्व को प्रकाशमय करती रहेगी|
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