Cultural Samvaad| Indian Culture and Heritage

अनन्त, सनातन सरस्वती की खोज

वह  पवित्रता और निर्मलता की साक्षात प्रतिमूर्ति हैं| वह वास्तविक ज्ञान प्रदान करती हैं और बुद्धि का निरन्तर पोषण करती हैं| वह सात्विक विचारों एवं सतकर्मों का उद्‌गम स्थान हैं| वह अनन्त हैं| वह शाश्वत हैं| वह माँ सरस्वती हैं।

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Saraswati Vedic Mantra

ऋग्वेद में एक अत्यंत शक्तिशाली नदी के रूप में प्रशंसित एवं विद्या की अधिष्ठात्री देवी के स्वरूप में पूज्य माँ सरस्वती, भारतीय संस्कृति को प्रतिबिम्बित करती हैं| वह  भौगोलिक और धार्मिक सीमाओं के परे हैं और हिन्दू , जैन एवं बौद्ध तीनों ही धर्मों में सम्मानित हैं। जापान में पूजित बेंज़ाइटेन (Benzaiten) का प्रादुर्भाव भी सरस्वतीजी से ही हुआ है|

माँ सरस्वती की कहानी – ‘नदीतमे’ से विद्या की देवी का सफर

भारतीय दर्शन के अनुसार शाश्वत सत्य का ज्ञान अत्यंत जटिल है एवं अज्ञान के असंख्य कोशों को हटा कर ही, उसे प्राप्त किया जा सकता है| इसी दुर्बोध ज्ञान की तरह, ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी के विकास का ज्ञान भी साहित्यिक, पुरातत्त्विक एवं भूगर्भीय प्रमाणों की असंख्य परतों के पीछे छिपा है| फिर भी हम पूर्ण विश्वास से यह तो कह सकते हैं की माँ सरस्वती कम से कम चार हजार वर्षों से भारत भूमि पर पूज्य हैं ।

ऋग्वेद में सरस्वती कोई साधारण नदी नहीं हैं| उनकी प्रशंसा करते हुए ऋषियों ने कहा की वह स्वर्ग से उत्पन्न हो, धरती पर प्रवाहित होती हैं| वह समस्त नदियों की जननी, अत्यंत प्रभावशाली, शक्तिशाली एवं  विशाल थीं।

अम्बितमे नदीतमे देवितमे सरस्वति । (ऋग्वेद 2.41.16)

हे अत्यन्त श्रेष्ठ माता, अत्यन्त श्रेष्ठ ज्ञान प्राप्त करानेवाली तथा अत्यन्त तेजस्विनी माता सरस्वती ! (सातवलेकर की व्याख्या)

वह शक्तिशाली सरस्वती नदी सदियों के बहाव  में लुप्त हो गयीं और यजुर्वेद एवं  ब्राह्मणों में सरस्वती को ‘वाक्’ या ‘वाच्’ के रूप में भी पहचानी जाने लगीं | वैदिक काल के  पश्चात नदी के रूप में उनकी पहचान शनै:-शनै: अदृश्य होती गयी हालांकि महाभारत में एवं कालिदास की अभिज्ञानशाकुन्तलम् में उनके विलुप्त होने का संदर्भ मिलता है| पौराणिक काल में माँ सरस्वती ज्ञान की देवी और वेदों की जननी के रूप में स्थापित हुईं । आज भी हम उसी स्वरूप में उनको पूजते है।

समय के साथ सरस्वती नदी का जल भले ही विलुप्त हो गया हो , परन्तु उनसे से जुड़ी स्मृतियां और कथाएं कभी भी भारत के मानसपटल से विलुप्त नहीं हुई। प्रयागराज के त्रिवेणी संगम में गंगा और यमुना के साथ , अदृश्य तीसरी नदी के रूप में सरस्वती सदैव पूज्य रहीं है। वेदों में वर्णित उस शक्तिशाली सरस्वती नदी की खोज , निरन्तर चल रही है।

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हड़प्पा या सिंधु-सरस्वती सभ्यता की सरस्वती?

विगत कुछ दशको में प्रसिद्ध इतिहासकार एवं पुरातत्त्विज्ञ बी. बी. लाल, एस. पी. गुप्ता, दिलीप चक्रबर्ती एवं वी. एन. मिश्रा इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं की सरस्वती वही नदी है , जिसके तटों पर हड़प्पा सभ्यता के अनेक शहर एवं गाँव बसे थे| वी. एन. मिश्राजी  का मानना है की वेदों, इतिहास एवं संस्कृत साहित्य में वर्णित सरस्वती नदी का स्थान,  आकार एवं अन्य विवरण वर्तमान समय में घग्गर-हकरा नदी से मेल खाते हैं| उनका एकांतिक मत है की घग्गर-हकरा नदी, ऋग्वेद की नदीमती सरस्वती की अवशेष है, वही सरस्वती नदी जो सिंधु सभ्यता की जीवनधारा थीं| एस पी गुप्ताजी  ने यह प्रस्ताव भी रखा है कि सिन्धु सभ्यता को सिन्धु – सरस्वती सभ्यता कहा जाना चाहिए| इस प्रस्ताव पर तर्क-वितर्क जारी है| मेरा अपना मानना है की यह सुझाव उचित है| (मिशेल दनिनो द्वारा रचित उत्कृष्ट पुस्तक – ‘द लॉस्ट रिवर’ पाठक सरस्वती नदी पर चल रहे वाद-विवाद के संदर्भ में विस्तृत जानकारी हेतु पढ़  सकते है। )

मानव को पवित्र करने वाली, अंतरात्मा को जागृत करने वाली माँ सरस्वती

भारतीय संस्कृति एवं हमारी संस्कृति से प्रभावित अन्य संस्कृतियों में माँ सरस्वती विद्या और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी हैं एवं वेदों और समस्त कलाओं की जननी के रूप में मान्य हैं| विद्यार्थी विशेषकर विद्या अर्जन हेतु उनका आवाहन  करते है परंतु उनका आवाहन मात्र पढ़ाई या कला में श्रेष्ठता प्राप्त  करने तक ही सीमित नहीं है।

ऋग्वेद की ऋचायें (1.3.10 -12) हमें उनके आवाहन के वास्तविक अर्थ का स्मरण कराती हैं। पावका नः सरस्वती –  सरस्वती हमें शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक रूप से पवित्र करने वाली हैं ; चोदयित्री सून्र्तानां – सत्य कर्मों को करने के लिए प्रेरित करने वाली हैं, चेतन्ती सुमतीनाम – उत्तम बुद्धियों को बढ़ाने वाली और चेतना को जागृत करने वाली हैं एवं धियो विश्वा वि राजति – सब प्रकार की बुद्धियों को आलोकित करने वाली हैं ( सातवलेकर और ओरोबिन्दो पर आधारित व्याख्या)

श्वेत वस्त्रों में सुसज्जित , श्वेत कमाल पर आसीन माँ सरस्वती, पवित्रता और शुद्धता की प्रतिमूर्ति हैं| उनका वाहन हंस अपने नीर-क्षीर विवेक (दूध और जल को अलग-अलग करने का ज्ञान) के लिए प्रसिद्ध है| जब हम देवी सरस्वती की आराधना करते हैं, तो हम वास्तव में विचारों एवं कर्मों की शुद्धता के लिए, सही और गलत में भेद करने वाले अद्वितीय ज्ञान की प्राप्ति के लिए तथा अपनी अंतरात्मा को जागृत करने के लिए प्रार्थना करते है।

यह जागृति एवं ज्ञान मानव मात्र की नित्य, निरन्तर एवं सनातन खोज है और यह ही माँ सरस्वती का शाश्वत आशीर्वाद भी है। अंततः हमारा यही  निष्कर्ष हैं की वेदों में वंदित, पावन सरस्वती नदी निरन्तर बह रही है और अनन्त काल तक बहती रहेगी (द सरस्वती फ्लोस ऑन – श्री बी. बी. लाल द्वारा अङ्ग्रेज़ी में प्रकाशित पुस्तक का शीर्षक है )|

Saraswati - Raja Ravi Verma
Saraswati – Raja Ravi Verma
Wikimedia Commons

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।

या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥

जो कुन्द के फूल, चन्द्रमा, बर्फ़ और मोती के हार की तरह श्वेत हैं, जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा सुशोभित है, जिन्होंने श्वेत कमल पर आसन ग्रहण किया है तथा  ब्रह्मा, विष्णु एवं शङ्कर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित (वन्दित) हैं, वही सम्पूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली माँ सरस्वती, मेरी रक्षा करें।

Greetings on Saraswati Puja

Select References:

  1. Danino, Michael (2010). The Lost River: On the Trail of the Sarasvati. Penguin Books India.
  2. Ghose, Aurobindo (1998). The Secret of the Aurobindo Ashram.
  3. Kinsley, D. (1986). Hindu Goddesses: Visions of the Divine Feminine in the Hindu Religious Tradition. University of California Press.
  4. Lal B.B. (2002). The Sarasvatī flows on: the continuity of Indian culture. Aryan Books International.
  5. Misra, V. (2001). The Role Of The Rigvedic Sarasvati In The Rise, Growth And Decline Of The Indus Civilization. Annals of the Bhandarkar Oriental Research Institute, 82(1/4), 165-191.
  6. दामोदर सातवलेकर (2011). ऋग्वेद का सुबोध भाष्य – भाग  १ & २. स्वाध्याय मण्डल, पार्डी.

 

Garima Chaudhry Hiranya Citi Tata Topper

Garima Chaudhry

Garima is a corporate leader and the Founder and Editor of Cultural Samvaad. Passionate about understanding India’s ancient 'संस्कृति 'or culture, she believes that using a unique idiom which is native to our land and her ethos, is the key to bringing equitable growth and sustainable change in India.

Deeply interested in Indic Studies, Garima has been a visiting faculty member for over a decade at the Mumbai University and K J Somaiya Institute of Dharma Studies among others. She has taught diploma, graduate and post graduate courses in Development of Religious Thought in India, Hindu Thought and Purakatha, Buddhism and Comparative Mythology among others. She also conducts immersive workshops for various cohorts on appreciating India and her past, her dharmic traditions and her enduring values, stories and symbols.

In her corporate avataar, Garima runs Hiranya Growth Partners LLP, a boutique consulting and content firm based in Mumbai. She is a business leader with over 25 years of experience across Financial Services, Digital Payments and eCommerce, Education and Media at Network18 (Capital18 and Topperlearning), Citibank and TAS (the Tata Group). Garima is an MBA from XLRI, Jamshedpur and an Economics and Statistics Graduate.

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