Join Cultural Samvaad’s WhatsApp community
गुरु नानक देव जी का जन्म तलवंडी नामक ग्राम (वर्तमान काल में पाकिस्तान में ननकाना साहिब से प्रचलित ) में 1469 ईस्वी में हुआ था। परंपरागत रूप से कार्तिक पूर्णिमा को उनका प्रकाश उत्सव (परकाश पुरब) मनाया जाता है।[i]
सिक्ख संप्रदाय के प्रथम गुरु – श्री गुरु नानक देव जी, इस युग के एक महान द्रष्टा एवं परम सुधारक थे| उनका स्थान भारत की आध्यात्मिक भूमि पर पैदा हुए महान संतों में शीर्षस्थ स्थान पर है| गुरु नानक देव जी अपने उपदेश सरल जन भाषा में देते थे| उनकी मधुर वाणी सब को मंत्रमुग्ध करने वाली थी|
भक्ति के अमृत से ओतप्रोत, गुरु नानक देव जी ने परमात्मा की परिकल्पना ‘इक ओंकार सतनाम’ कह कर की| उनके कथन अनुसार, मानव की एक ही जाति होती है और न कोई हिन्दू होता है और न ही कोई मुसलमान होता है । बाबाजी ने समकालीन वर्ण व्यवस्था एवं प्रचलित रूढ़िवादीयों का खंडन किया| स्त्रियों को पुरुषों के समकक्ष माना| ‘सब समान हैं’ – यह संदेश उनकी सर्वस्व शिक्षा की आधारशिला था| अपने अलौकिक संदेश से उन्होंने मानो भारत की पृष्ठभूमि पर एक नवीन ऊर्जा का संचालन कर दिया था|
मूल मन्तर (मंत्र)
श्री गुरु नानक देव जी ने मूल मंत्र के द्वारा विश्व के समक्ष निराकार परमात्मा की व्याख्या की| उनके द्वारा प्रतिपादित यह दिव्य एवं गूढ़ मन्त्र, गुरु ग्रन्थ साहिब जी का प्रथम मंत्र है|
ੴ (इक ओंकार) सतिनामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर प्रसादि||
जप : आदि सचु जुगादि सचु| है भी सचु नानक होसी भी सचु||
मूल मन्तर (मंत्र) की व्याख्या:[ii]
ੴ (इक ओंकार) – परमात्मा एक हैं
सतिनामु – सत्य-स्वरूप हैं
करता पुरखु – सृष्टि के रचयिता एवं सर्वव्यापक हैं
निरभउ – निर्भय हैं
निरवैरु – निर्वैर हैं – उनका किसी से वैर नहीं है
अकाल मूरति – अमर हैं – समय और काल के परे हैं
अजूनी – अजन्मा हैं
सैभं – स्वयंभू हैं (खुद प्रकट हुए हैं)
गुर प्रसादि – उन्हें उनकी कृपा के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है
जप
आदि सचु – परमात्मा सृष्टि के आरम्भ में थे
जुगादि सचु – वह हर युग में विद्यमान रहते हैं
है भी सचु – वह सत्य-स्वरूप विद्यमान थे और आज भी विद्यमान हैं
नानक होसी भी सचु – नानक कहते हैं कि वह सर्वत्र विद्यमान रहेंगे
परमात्मा एक हैं, सत्य-स्वरूप हैं और सृष्टि के रचयिता एवं सर्वव्यापक हैं| वे निर्भय, निर्वैर एवं समय और काल के परे हैं| परमात्मा अजन्मा हैं और स्वयंभू हैं|| उन्हें उनकी कृपा के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है| जप – परमात्मा सृष्टि के आरम्भ में थे और वह हर युग में विद्यमान रहते हैं| वह सत्य-स्वरूप विद्यमान थे और आज भी विद्यमान हैं| नानक कहते हैं कि वह सर्वत्र विद्यमान रहेंगे|
नाम जपना, किरत करना, वंड छकना
गुरु नानक देव जी ने मनुष्य को सदैव तीन कर्तव्यों का निर्वाह करने की शिक्षा दी – नाम जपो, किरत करो, वंड (बाँट कर) छको| इसका तात्पर्य है की हर घड़ी, सर्वत्र अकाल पुरख की उपस्थिति का अनुभव कीजिये। ईश्वर के नाम का जप एवं ध्यान कीजिये| ‘एको नाम हुकुम है सतगुरु दिया बुझाई जियो’| अर्थात् भगवान के नाम पर सतत चिंतन करना, भगवान की ही आज्ञा है। अपना जीवन यापन ईमानदारी से कीजिये एवं परिश्रम और कर्तव्यनिष्ठा से धन कमाइये | उदार बनिये एवं आपके पास जो है, उसे उन लोगों के साथ बाँट कर खाइये, जिन्हें इसकी आवश्यकता है। यह सेवा का सार है। उन्होंने अपने अनुयायियों को पराये धन की लालसा न रखने की और परनिंदा न करने की सीख भी दी|
नाम , दान, इश्नान
गुरु नानक देव जी ने मानव मात्र का परमात्मा के साथ, सम्पूर्ण मानव जाति के साथ एवं स्वयं अपने साथ के संबन्धों को धर्मानुसार निभाने हेतु ‘नाम, दान, इश्नान’ का अचूक सूत्र दिया| नाम और दान की व्याख्या तो पाठक स्वयं ही करने में सक्षम हैं। इश्नान या स्नान, शरीर, आत्मा और विचार, सब की स्वच्छता एवं पवित्रता की ओर इंगित करता है| स्वच्छता के भी अनेक पक्ष होते हैं – शारीरिक स्वच्छता, सामाजिक स्वच्छता एवं पर्यावरण की स्वच्छता।
इश्नान का समकालीन भारत में विशेष महत्व है| जिस भारत की भूमि पर सिंधु घाटी की सभ्यता और वेदों से लेकर, गुरु नानक देव जी जैसे महान पुरुषों तक ने पर्यावरण एवं स्वच्छता को ईश्वरीय दर्जा दिया, उसी भूमि पर आज हम स्वच्छता एवं वसुधा के संरक्षण के पाठ भूल गए| एक स्वच्छ राष्ट्र, एक स्वच्छ भारत का निर्माण कर, कदाचित् हम गुरु नानक देव जी जैसे महापुरुष की शिक्षा को चरितार्थ कर पायेंगे|
गुरु नानक देव जी मानव द्वारा निर्मित संकीर्ण दीवारों से परे हैं| उनके द्वारा दिखाया गया मार्ग सहज होते हुए भी कठिन है| निराकार अकाल पुरख की उनकी परिकल्पना और नैतिक एवं भौतिक जीवन मूल्यों पर उनके शबद कालातीत हैं और समस्त मानव जाति का उद्धार करने वाले हैं| उनकी वाणी अंधकार से प्रकाश की ओर हमारी यात्रा में वास्तविक रूप में प्रकाश ही है|
[i] ऐतिहासिक आधार पर विद्वान उनकी जन्मतिथि को 15 अप्रैल 1469 मानते हैं|
[ii] यह अनुवाद लेखक द्वारा मूल मंत्र का सार बताने हेतु किया गया है। पाठकों से अनुरोध है की मूल मंत्र पर लिखी गई सुंदर टिप्पणियों एवं भाष्यों को अवश्य पढ़ें ।
Read Guru Nanak Devji’s teaching in English.
Add comment