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भारतवर्ष के अधिकतर पर्व एवं त्योहार प्रकृति एवं कृषि के निरन्तर चक्र से सम्बंध रखते हैं| जनवरी के महीने में हमारे देश के बहुत से भाग कड़ाके की ठंड से जूझ रहे होते हैं, परन्तु हमारे खेतों में हर ओर हरियाली ही हरियाली होती है| कृषक अपनी लहलहाती फसल देख फूले नहीं समाते, देवता जाग चुके होते हैं और सूर्य भगवान उत्तर दिशा की ओर अपनी यात्रा में संलग्न होते हैं| प्रकृति की इस अनूठी अनुकंपा से हर्षित होकर, देश के कोने-कोने में उत्सव का माहौल हो जाता है और हम लोहड़ी, मकर संक्रान्ति, पोंगल, उत्तरायण, माघ बीहू, पौष संक्रान्ति, आदि पर्व मनाते हैं|
संस्कृत में ‘संक्रान्ति’ शब्द का अर्थ होता है – एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना| मकर संक्रान्ति के दिन, सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है और इस संक्रान्ति को वर्ष की सबसे महत्वपूर्ण 12 संक्रातियों में से एक माना जाता है । यह उत्तरायण[i] का समय होता है – दिन अब धीरे-धीरे लंबे हो रहे हैं, वर्ष की सबसे लंबी रात को हम पीछे छोड़ आये हैं| हिन्दू मान्यता के अनुसार उत्तरायण के समय देवताओं के लिए दिन होता है एवं दक्षिणायन के समय देवताओं के लिए रात होती है| क्योंकि देवता जाग रहे होते हैं, मानव उनसे धन-धान्य हेतु याचना करते हैं नाना प्रकार से उत्सव मनाकर, उनका आभार व्यक्त करते हैं|
पंजाब में लोक मान्यता है की लोहड़ी की रात, शीत काल की सबसे ठंडी रात होती है। रात के समय परिवार के सदस्य, मित्रगण, पड़ोसी, इत्यादि एकत्रित हो, लोहड़ी प्रज्वलित कर, उसकी मंत्रमुग्ध करने वाली धधकती लपटों का आनंद लेते हैं| गज़क (तिल और गुड़ की एक पारंपरिक मिठाई), पॉपकॉर्न, मूँगफली, खीर और रेवड़ी अग्नि देवता को अर्पित की जाती हैं और तत्पश्चात सब को बांटी जाती हैं| पारंपरिक लोक गीतों, नृत्य और हँसी की आवाज़ सर्द हवाओं को चीर, ठंड के वातावरण में उत्साह, खुशहाली और कृतज्ञता की गरमाई भर देती है।
देश के दक्षिणी हिस्सों में यह पर्व पोंगल (मुख्य रूप से तमिलनाडु में) और संक्रान्ति के नाम से प्रसिद्ध है और आमतौर पर 3-4 दिनों तक मनाया जाता है। संक्रांति से एक दिन पहले भोगी होती है| जीर्ण- शीर्ण पुरानी वस्तुओं को अग्नि में जलाया जाता है| इस रीति के पीछे बहुत गहन सोच है| जैसे मनुष्य उन वस्तुओं का परित्याग करता है जो उपयोग करने योग्य नहीं हैं, वैसे ही उसे उन विचारों का भी परित्याग करना चाहिए जो विकास में बाधक है। दूसरे दिन तमिलनाडु में थाई पोंगल मनाई जाती है| नये चावल को ग्रहण करने के पहले देवताओं को चढ़ाया जाता है। परंपरा के अनुसार, नये चावल को खुले स्थानों में दूध के साथ खुले बर्तन में तब तक पकाया जाता है जब तक वह उबाल कर पत्र से बाहर न आ जाए । पोंगा शब्द का अर्थ उबलना है और उबलने को समृद्धि का द्योतक माना जाता है। अगले दिन कानुम्मा (आंध्र / तेलंगाना) या मट्टू पोंगल के रूप में मनाया जाता है। इस दिन गाय -बैल आदि मवेशियों की पूजा की जाती है | गायों को हमें दूध देने के लिए और बैल को कृषि में हमारी मदद करने हेतु धन्यवाद दिया जाता है। पोंगल में सुंदर कोलम बना अपने घर-आँगन सुसज्जित करने का भी विशेष महत्व है| पोंगल में सुंदर कोलम बना अपने घर-आँगन सुसज्जित करने का भी विशेष महत्व है|
असम में यह पर्व माघ बीहू के नाम से प्रचलित है एवं कृषि से संबंध रखता है। देश के अधिकांश हिस्सों में संक्रान्ति या ‘खिचड़ी’ के इस उत्सव में स्नान करने, पतंग उड़ाने (विशेष रूप से गुजरात और महाराष्ट्र में ), तिल से बने लड्डू या व्यंजन खाने (तिल शरीर को गर्म रखते हैं) , खिचड़ी खाने (मुख्य रूप से यूपी और बिहार – खिचड़ी चावल और दाल से बनी होती है), दान देने और नई फसल से प्रेम पूर्वक तैयार की गयी भोजन सामग्री को देवताओं को अर्पित कर, बांटने का विशेष महत्व है|
मकर संक्रान्ति पर देश की अनेकानेक नदियों के तटों पर मेलों का आयोजन होता है। प्रयाग और गंगासागर के मेले विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं| ऐसी मान्यता है की संगम के पवित्र जल में इस दिन डुबकी लगाना किसी वरदान से कम नहीं है। संक्रांति को ही सहस्रों तीर्थयात्री, केरल में स्थित सबरीमला मंदिर की मकर ज्योति का दर्शन करने के लिए एकत्रित होते हैं।
मध्य जनवरी में भिन्न- भिन्न रीति-रिवाजों से मनाये जाने वाले ये उत्सव, वास्तव में भारत की विविधता का ही नहीं अपितु उस बहुरंगी विविधता में एकता का भी सदृश्य उदाहरण हैं। भारतीय संस्कृति में स्नान का विशेष महत्व है| स्नान न केवल शारीरिक शुद्धि का वरन् मन एवं आत्मा की शुद्धि का भी प्रतीक है| दान देना कदाचित् मानवता का एक आवश्यक परिचायक है। हमारी संस्कृति, हमें उपभोग के पहले दान करने की शिक्षा देती है। लहलहाते खेत प्रकृति का मानव जाति को एक अनमोल उपहार है। संक्रान्ति के विभिन्न अनुष्ठान द्वारा हम उन प्राकृतिक तत्वों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं जो मानवीय जीवन के संरक्षण हेतु आवश्यक हैं। सूर्य, अग्नि और पशुओं की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि वे शस्य श्यामला पृथ्वी एवं हमें पोषित करते हैं| वर्तमान काल में, जब मानव जाति मूर्खतावश और दुर्भाग्यवश निरंतर प्रकृति एवं पर्यावरण से संघर्ष कर रही है, तब संक्रान्ति के पर्व का महत्व और भी बढ़ जाता है| यह केवल हर्षोल्लास का पर्व नहीं है, बल्कि प्रकृति पर हमारी निर्भरता के बारे में मनन करने एवं हमारे क्रिया-कलापों पर चिंतन करने का भी पर्व है।
[i] आम भाषा में, भारत के कुछ भागों में इस पर्व को उत्तरायण का नाम दिया गया हैं| यह समझना आवश्यक है कि यह पर्व उत्तरायण में मनाया जाता है परंतु सूर्य के उत्तरायण होने का दिवस नहीं है|
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