आदर्श मनुष्य वह है जो अक्षुण्ण शांति और निर्जनता में रहता हुआ भी अविराम गति से कर्मण्य रहता है तथा जो घोर कर्मण्यता का केंद्र होते हुये भी वन की सी शांति और निर्जनता पाता है । उसने निरोध का रहस्य सीख लिया है । अपने आपको उसने वश में कर लिया है । विशाल नगरी के कोलाहल-पूर्ण जनपथ में जाते हुए भी, उसका चित्त ऐसे शांत रहता है, जैसे वह किसी दूर पर्वत- कंदरा में बैठा हो जहाँ पक्षी तक न वोलता हो; और सारे समय वह कर्मरत रहता है । यही कर्म योग का आदर्श है और यदि आप वहाँ तक पहुँच गये तो आपने वास्तव में कर्म का रहस्य जान लिया है ।
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