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भारत की पृष्ठभूमि अनेक महान योद्धाओं की गाथाओं से परिपूर्ण है परन्तु उन सभी योद्धाओं में शायद श्रेष्ठ, अद्वितीय योद्धा का स्थान – माँ महिषासुरमर्दिनी को ही प्राप्त है । इस रूप में देवी के उद्भव के इतिहास के अनावरण पर, अनेकानेक बुद्धिजीवि अभी भी कार्यरत हैं| फिर भी इतना तो सर्वविदीत है कि महिषासुरमर्दिनी के रूप में शक्ति की ठोस आकृतियाँ, कम से कम दो सहस्राब्दी से भारतीय सभ्यता का अभिन्न अंग रहीं हैं। दुर्गा महिषासुरमर्दिनी भारत के समस्त योद्धाओं के लिए पूज्य रही हैं । रामकथा में श्रीराम से लेकर महाभारत में अर्जुन तक और शिवाजी महाराज से लेकर गुरु गोविंद सिंह तक, हर शूरवीर ने युद्ध पर कूच करने के पूर्व उनकी प्रार्थना की है । जन साधारण उन्हें माँ के रूप में रक्षा एवं पोषण के लिए पूजते हैं ।
अधिकांश भारतीय कहानियों की तरह, महिषासुरमर्दिनी की कथा के भी कई रूपांतर ग्रंथों एवं अन्य लोक कथाओं में मिलते हैं । दुर्गा और महिषासुर वराह पुराण, वामन पुराण, स्कंद पुराण और कालिका पुराण सहित विभिन्न पुराणों में उपस्थित हैं| हमने इस लेख में एवं संलग्न विडियो में परमशक्ति देवी की उत्पत्ति और महिषासुर वध की सबसे प्रचलित कथा का प्रयोग किया है| यह कथा मार्कण्डेय पुराण के एक भाग – दुर्गा सप्तशती में पायी जाती है|
देवी माहात्म्य में महिषासुरमर्दिनी
भारत के महान ग्रंथ – दुर्गा सप्तशती के द्वितीय से चतुर्थ अध्यायों में महिषासुरमर्दिनी की कथा संक्षिप्त रूप में निम्नलिखित है|
आदि काल में, शक्तिशाली असुर महिष और उसकी विशाल सेना ने इन्द्र, आदि देवताओं को सौ वर्ष तक चले घोर संग्राम में परास्त कर दिया| महिषासुर इन्द्र का सिंहासन छीन, स्वयं ही इन्द्र बन बैठा | हारे हुए देवताओं ने विष्णु और शिव से सहायता के लिए प्रार्थना की| क्रोधित त्रिदेव एवं अन्य सभी देवताओं के भीतर से महान तेज प्रकट हुआ| यह अतुलनीय तेजस्वी ऊर्जा मिलकर, एक ज्वलंत पर्वत के समान प्रतीत होने लगा और फिर अद्वितीय देवी – आदि शक्ति में परिणत हो गया| जगत जननी माँ समस्त दैवीय अस्त्र–शस्त्रों – शंख, चक्र, भाला, त्रिशूल, कमल, गदा, आदि से सुसज्जित थीं|
नाना प्रकार के रत्नों से विभूषित शक्ति ने उच्च गर्जना की | उस गर्जना की प्रतिध्वनि से समस्त संसार डोलने लगा| उनका अट्टहास सुन, महिषासुर की सेना ने उन पर आक्रमण कर दिया | देवी ने अपने अस्त्र-शस्त्रों से और अपने वाहन सिंह के साथ असुर सेना को छिन्न-भिन्न कर दिया| निडर महिष ने भैंसे का रूप धारण कर, शूरवीर योद्धा – शक्ति पर हमला करा| तीन नयनों वाली, विकराल देवी और महिषासुर ने कई वर्षों तक धरती और आकाश में भयंकर युद्ध किया । अन्त में कुपित देवी ने उसका देह अपने चरणों तले दबा, उसका गला अपने शूल से भेद दिया| महिष का आधा धड़ ही भैंस रूपी धड़ से बाहर आ पाया था कि तभी आदि शक्ति ने महिष का मस्तक काट गिराया और महिषासुरमर्दिनी के नाम से विख्यात हुईं | इसी प्रकार देवी माँ हर युग में , हर काल में धर्म की पुनःस्थापना करती हैं |
दुर्गा महिषासुरमर्दिनी की कहानी के अलौकिक संदेश
महिषासुरमर्दिनी वैसे तो निराकार हैं, निर्गुण परब्रह्म हैं, परन्तु धर्म की पुनःस्थापना हेतु वे भक्तों के आग्रह पर सगुण रूप धारण करती हैं। वह एक स्वतन्त्र नारी के रूप में विद्यमान हैं एवं समय और काल से परे हैं| वह सदैव ही अपने भक्तों की सहायता हेतु तत्पर हैं और मानव मात्र की रक्षा और पोषण करने वाली जगत जननी हैं।
महिषासुर तमोगुण का प्रतीक है| शायद मनुष्य की मौलिक प्रवृत्ति अभिमान की, आलस्य की और अज्ञान की होती है। दुर्गा महिषासुरमर्दिनी अज्ञान का हनन करती हैं, वह शिथिलता को ध्वस्त करती हैं और मानव मात्र में निहित अहंकार का नाश करती हैं| देवी माँ हमें अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर करती हैं ।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥.
मैं उस देवी माँ को निरंतर, बारंबार प्रणाम करती हूँ, जो समस्त चराचर विश्व में शक्ति के रूप में स्थित हैं|
Read a version of this post in English and watch the video on Mahishasura Mardini.
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