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भारत की पुण्यभूमि पर ५,००० से अधिक वर्षों से शक्ति की निरन्तर पूजा हो रही है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह गौरव किसी और सभ्यता को प्राप्त नहीं है| हमारी सबसे महान देवीओं में, सर्वशक्तिमान, अनादि दुर्गाजी का विशेष महत्व है।
‘नवदुर्गा’ – दुर्गाजी की नौ अभिव्यक्तियाँ या अवतार हैं। इनका स्तवन-पूजन विशेष रूप से नवरात्रि के पावन पर्व पर किया जाता है| हालांकि प्रत्येक अवतार की पूजा विशिष्ट वरदानों हेतु की जाती है, भक्तों के लिए यह आवश्यक है कि वे आदिशक्ति के इन विविध रूपों के आध्यात्मिक रहस्य को समझ कर, उनकी उपासना कर, जीवन-मृत्यु के चक्र से मोक्ष पाने का प्रयास करें|
नवदुर्गा के नौ अवतारों के नाम इस प्रकार हैं – देवी शैलपुत्री, देवी ब्रह्मचारिणी, देवी चन्द्रघण्टा, देवी कूष्माण्डा, देवी स्कन्दमाता, देवी कात्यायनी, देवी कालरात्रि, देवी महागौरी और देवी सिद्धिदात्री।
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देवी शैलपुत्री | Devi Shailaputri
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
देवी शैलपुत्री का अवतरण पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में हुआ था। वे वृषभ या बैल पर विराजमान हैं, उनके यशस्वी मुखमण्डल पर अर्ध-चंद्रमा सुशोभित है एवं उन्होंने हाथों में त्रिशूल और कमल धारण कर रखे हैं। माँ दुर्गा के इस मनोरम स्वरूप की आराधना नवरात्रि के प्रथम दिवस पर कर, साधक न केवल मनोवांछित लाभ की कामना करते हैं वरन् अपनी आध्यात्मिक यात्रा में कठिन से कठिन चोटी को चूमने हेतु माता शैलपुत्री का आवाहन भी करते हैं।
ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
देवी ब्रह्मचारिणी | Devi Brahmacharini
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू ।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ॥
ब्रहमचारिणी का अर्थ है – ‘तप का आचरण करने वाली’| देवी ब्रहमचारिणी ने भगवान शिव को प्राप्त करने हेतु अपना सर्वस्व त्याग कर, सहस्त्रों वर्ष तक कठिन तपस्या की थी| श्वेत वस्त्र धारण कर, हाथों में कमंडलु एवं जप की माला ले कर, आदिशक्ति माँ दुर्गा, इस ज्योतिर्मय स्वरूप में वैराग्य एवं सदाचार को प्रतिबिम्बित करती हैं| नवरात्रि के द्वितीय दिवस पर ब्रहमचारिणी की आराधना कर, भक्त कामना करते हैं कि वह सच्चिदानन्द ब्रह्म तक पहुंचने की अपनी यात्रा में कभी भ्रमित न हों एवं त्याग और संयम से जीवन व्यतीत करें|
ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥
देवी चन्द्रघण्टा | Devi Chandraghanta
पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता ।
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता ॥
देवी चन्द्रघण्टा के मुखमण्डल पर घण्टे के आकार में अर्ध-चंद्रमा विराजमान है, उनके दस हाथ हैं एवं उनकी सवारी सिंह है| अनेकानेक आयुधों से सुसज्जित, स्वर्णिम किरणों की तरह आभा बिखेरती, माँ दुर्गा का यह स्वरूप सदैव युद्ध के लिए तत्पर है| नवरात्रि के तीसरे दिन, देवी चन्द्रघण्टा की उपासना कर, भक्त न केवल अपने शत्रुओं से मुक्ति पाने की कामना करते हैं वरन् निर्भय, शान्त एवं संभाव आचरण के धनी होने के लिए भी प्रार्थना करते हैं|
ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥
देवी कूष्माण्डा | Devi Kushmanda
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च ।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
अष्टभुजा देवी कूष्माण्डा आदिशक्ति का स्वरूप हैं| उन्होंने ही अपनी मंद मुस्कराहट से इस अण्डाकार सृष्टि की रचना कर, सम्पूर्ण विश्व को अंधकार से मुक्त किया था| माँ दुर्गा की इस प्रतिमूर्ति के एक हाथ में अमृत का कलश है तो दूसरे हाथ में रक्त से भरा हुआ एक घड़ा है| नवरात्रि के चौथे दिन, भक्त देवी कूष्माण्डा की उपासना कर, न केवल शोक और रोग से मुक्ति प्राप्त करने की कामना करते हैं बल्कि सृष्टि में निहित परब्रह्म तक पहुँचने के दुर्लभ ज्ञान को जाग्रत करने के लिए भी प्रार्थना करते हैं।
ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥
देवी स्कन्दमाता | Devi Skandamata
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया ।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ॥
जगतजननी देवी का यह स्वरूप, देवताओं के सेनानायक भगवान स्कन्द (कुमार कार्तिकेय) की माता के रूप में पूजा जाता है| देवी स्कन्दमाता के दो हाथों में कमल के पुष्प हैं,एक हाथ वर मुद्रा में है एवं एक हाथ से वह वात्सल्य से अपने पुत्र को थामे हैं| नवरात्रि के पांचवें दिन, माँ दुर्गा की इस विभूति की एकाग्रचित्त हो, अर्चना कर, भक्त शान्ति एवं सुख की कामना के साथ अपने ज्ञान एवं अपनी क्रिया शक्ति में वृद्धि के लिए भी प्रार्थना करते हैं।
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥
देवी कात्यायनी | Devi Katyayani
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना ।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवघातिनी ॥
महिषासुर का अन्त करने हेतु जब देवी ने पृथ्वी पर अवतरण लिया, तब उनके प्रथम पूजन का सौभाग्य महर्षि कात्यायन को मिला और माँ दुर्गा का यह स्वरूप कात्यायनी के नाम से विख्यात हो गया| सिंह पर आरूढ़, चार भुजाओं वाली, उज्ज्वल माँ कात्यायनी के एक हाथ में उनकी चन्द्रहास तलवार है, एक हाथ में कमल सुशोभित है, एक हाथ वर मुद्रा में है एवं एक हाथ अभय मुद्रा में है| नवरात्रि के छठवें दिन, देवी माँ से उनके भक्त अपने मनोवांछित पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) को प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं।
ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥
देवी कालरात्रि | Devi Kalaratri
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी||
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी।।
माँ कालरात्रि का रंग रात के घने अन्धकार के समान एकदम काला है एवं उनके तीन गोल-गोल नयन हैं। गदर्भ पर सवार, चतुर्भुज माँ दुर्गा की यह भयंकर विभूति शुभङ्करी भी कहलाती हैं क्योंकि वे सदैव ही अपने भक्तों को शुभ फल प्रदान करती हैं। विद्युत की चमकीली किरणों की तरह दैदीप्यमान, माँ कालरात्रि की उपासना नवरात्रि के सातवें दिन, दुष्टों एवं भय से मुक्ति प्राप्त करने के लिए की जाती है।
ॐ देवी कालरात्र्यै नमः॥
देवी महागौरी | Devi Mahagauri
श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः ।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा ॥
गौर वर्ण की, गौर वस्त्र धारण कर, विद्युत की तरह श्वेत कान्ति से दैदीप्यमान, पवित्रता की प्रतिमूर्ति, देवी महागौरी वृषभ पर आरूढ़ हैं| माँ दुर्गा की यह अनुपम विभूति जिनके एक हाथ में त्रिशूल है एवं दूसरे हाथ में डमरू है, वास्तव में पर्वतीजी की है जिन्होंने भगवान शिव को पति के रूप में पाने हेतु सहस्त्रों वर्षों तक तप किया था| नवरात्रि के आठवें दिन, भक्तगण माता महागौरी की एकनिष्ठ भाव से उपासना कर न केवल लौकिक शांति एवं सुख की कामना करते हैं वरन् उनसे वर माँगते हैं की वे भी उनके समान अपने लक्ष्य को पाने के लिए एकाग्रचित्त हो कर, कठोर से कठोर तपस्या के कठिन पथ से कभी भी पथभ्रष्ट न हों|
ॐ देवी महागौर्यै नमः॥
देवी सिद्धिदात्री | Devi Siddhidatri
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि ।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी ॥
कमल पर विराजमान, चार हाथों वाली, अष्ट-सिद्धियाँ देने वाली, माँ सिद्धिदात्री की उपासना समस्त देव, दानव, मनुष्य, यक्ष, गन्धर्व, आदि करते हैं| आदिशक्ति की परम अनुकंपा से भगवान शिव ने जब समस्त सिद्धियाँ प्राप्त कर लीं, तब देवी सिद्धिदात्री उनके बायें भाग से उत्पन्न हुयीं| देवादिदेव शिव अर्धनारीश्वर के नाम से प्रसिद्ध हो गए| माँ दुर्गा की इस नवीं विभूति को नवरात्रि के अन्तिम दिन, माया रूपी संसार को पार कर सच्चिदानंद परब्रह्म को प्राप्त करने हेतु सर्वस्व पूजा जाता है|
ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः॥
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