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जज़िया के विरुद्ध छत्रपति शिवाजी महाराज का औरंगजेब को पत्र

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संपादकीय टिप्पणी

छत्रपति शिवाजी महाराज मराठा और भारतीय गौरव, वीरता एवं उत्कृष्ट राजधर्म के प्रतीक हैं। चार शताब्दी पूर्व ‘स्वराज्य’ के लिए शिवाजी का आह्वान, वर्तमान काल में भी भारतवासियों को प्रेरित करता है।

एक श्रेष्ठ योद्धा होने के साथ, शिवाजी अपनी वाक्पटुता के लिए भी प्रसिद्ध थे|’जज़िया कर‘ के विरुद्ध उनके द्वारा मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब को लिखा गया उनका यह प्रभावशाली पत्र अत्यंत पठनीय है| लीला प्रभु द्वारा फारसी भाषा में रचित, यह तर्कसंगत पत्र न केवल धार्मिक सहिष्णुता का पाठ पढ़ाता है, बल्कि राजधर्म के सिद्धांतों से भी हमारा परिचय करता है।

हमने यह पत्र सर यदुनाथ सरकार की सुप्रसिद्ध पुस्तक ‘शिवाजी’ से लिया है एवं इस में मामूली संशोधन किए हैं|SHIVAJI Defies Aurangzeb

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जज़िया के विरुद्ध शिवाजी महाराज का औरंगज़ेब को पत्र

बादशाह आलमगीर ! सलाम! मैं शिवाजी आपका पक्का शुभचिंतक और चिरहितैषी हूँ। ईश्वर की दया और सूर्यकिरण से भी उज्ज्वलतर बादशाह के अनुग्रह के लिए धन्यवाद प्रदान कर निवेदन करता हूँ कि –

यद्यपि यह शुभाकांक्षी दुर्भाग्यवश आपकी महिमामंडित सन्निधि से बिना अनुमति लिये ही आने को बाध्य हुआ था, तथापि मैं जितना सम्भव और उचित हो सकता है, सेवक के कर्त्तव्य और कृतज्ञता का दावा सम्पूर्ण रूप से पूरा करने में हमेशा तत्पर रहता हूँ।

सुनता हूँ कि मेरे साथ लड़ाई लड़ने के कारण आपका धन और राज्य-कोष खाली हो गया है, और इसी कारण आप हुक्म दे बैठे हैं कि जज़िया नामक कर हिन्दुओं वसूल किया जाये कि वह आपके अभाव को पूर्ण करने में काम आवे।

बादशाह सलामत ! इस साम्राज्य-रूपी भवन के निर्माता बादशाह अकबर ने पूर्ण गौरव से ५२ (चन्द्र) वर्ष राज्य किया। उन्होंने ईसाई, यहूदी, मुसलमान, दादूपन्थी, नक्षत्रवादी (फलकिया =गगनपूजक) , परीपूजक (मालाकिया), विषयवादी (आनसरिया), नास्तिक, ब्राह्मण, श्वेताम्बर-दिगम्बर, आदि सब धर्म सम्प्रदायों के प्रति सार्वजनीन मैत्री (सुलह-इ-कुल = सबके साथ शान्ति) की सुनीति को ग्रहण किया था। सबकी रक्षा और पोषण करना ही उनके उदार हृदय का उद्देश्य था । इसीलिए वे ‘जगद्गुरु’ कहलाए|

उसके बाद बादशाह जहाँगीर ने २२ वर्ष तक अपनी दया की छाया जगत और जगतवासियों के सिर के ऊपर फैलाई। उन्होंने बन्धुओं के तथा प्रत्यक्ष कार्य करने में अपना हृदय लगा दिया, और इस प्रकार मन की इच्छाओं को पूर्ण किया। बादशाह शाहजहाँ ने भी ३२ वर्ष राज्य कर सुखी पार्थिव जीवन के फल स्वरूप अमरता अर्थात सौजन्य और सुनाम कमाया । फारसी का पद्य है- “जो आदमी जीवन में सुनाम अर्जन करता है, वह अक्षय धन पाता है, क्योंकि मृत्यु के उपरान्त उसके पुण्य-चरित्र की कथा ही उसके नाम को बनाए रखती है|”

अकबर की उदारता का ऐसा पुण्य-प्रभाव था कि वह जिस ओर जाते विजय और सफलता आंग बढ़कर उनका स्वागत करती थी। उनके शासन काल में बहुत से देश और किले जीते गये । इसी से शुरू के सम्राटों की शक्ति और उनका ऐश्वर्य सहज ही समझ में आता है । जिनकी राजनीति का अनुसरण मात्र करने में ही आलमगीर बादशाह विफल और व्यग्र हो गये हैं, उन बादशाहों में भी जज़िया-कर लगाने की शक्ति थी; परन्तु उन लोगों ने अन्ध-विश्वास को हृदय में स्थान नहीं दिया, क्योंकि वे जानते थे कि ईश्वर ने ऊँच-नीच, सब आदमियों का भिन्न-भिन्न धर्मों में विश्वास और उनकी विभिन्न प्रवृत्तियों के दृष्टांत दिखाने के लिए ऐसी सृष्टि की है। उनके दया- दाक्षिण्य की ख्याति उनकी स्मृति के रूप में चिर काल तक इतिहास में लिखी रहेगी, और छोटे बड़े सभी आदमियों के कण्ठों और हृदय में इन तीन पवित्र आत्माओं (सम्राटों) के लिए प्रशंसा और मंगल-कामना बहुत दिन तक वास करेगी। लोगों की हृद्गत आकांक्षा के कारण ही सौभाग्य और दुर्भाग्य आते हैं, अतएव उनकी धन-सम्पत्ति दिन पर दिन बढ़ती ही गई। ईश्वर के प्राणी उनके सुशासन के कारण शान्ति और निर्भयता से शय्या पर आराम करने लगे, और उनके सब काम सफल हुए।

और आपके शासन-काल में ? बहुत से किले और प्रदेश आपके हाथ से निकल गये और बाकी  भी शीघ्र ही चले जाएंगे, क्योंकि उनके नाश और छिन्न-भिन्न करने में मेरी ओर से कोशिश में कमी न होगी। आपके राज्य में रिआया कुचली जा रही है| हर एक गाँव की आमदनी कम हो गई है| एक लाख की जगह एक हज़ार और एक हज़ार के स्थान में दस ही रुपये वसूल होते हैं और वे भी बड़े कष्ट से । बादशाह और राजपूतों के दरबार में आज दरिद्रता और भिक्षा वृत्ति ने अड्डा जमा लिया है। उमरावों और अमलों की हालत तो सहज में ही सोची जा सकती है। आपकी अमलदारी में सेना अस्थिर है, और बनिये अत्याचार से पिसे हुए हैं । मुसलमान रोते हैं । हिन्दू जलते हैं। प्रायः सारी प्रजा को ही रात को रोटी नसीब नहीं होती है, और दिन में मन के सन्ताप के कारण हाथ मारने से उनके गाल लाल हो जाते हैं|

ऐसी दुर्दशा में प्रजा के ऊपर जज़िया का बोझ लाद देने के लिए आपके राज-शाही दिल ने आपको कैसे प्रेरित किया? बहुत जल्द ही पश्चिम से पूर्व तक यह अपयश फैल जायेगा कि हिन्दुस्तान के बादशाह भिक्षुकों की थालियों पर लुब्ध दृष्टि डालकर ब्राह्मण पुरोहित, जैन यति, योगी, सन्यासी, वैरागी, दिवालिया, निर्धन और अकाल के मारे हुए लोगों से जज़िया ले रहे हैं और भिक्षा की झोली की छीना-झपटी में आपका विक्रम प्रदर्शित हो रहा है ! आपने तैमूर वंश के नाम और मान को डुबा दिया है !

बादशाह सलामत ! यदि आप खुदा की किताब (= कुरान शरीफ) में विश्वास करते हों, तो उसे देखें; आपको मालूम होगा कि वहाँ लिखा है कि ईश्वर सब का मालिक है (रब्बुल आलमीन) केवल मुसलमानों का ही मालिक ( रब्बुल -मुसलमीन ) नहीं है| यथार्थ में इसलाम और हिन्दू-धर्म दो भिन्नता वाचक शब्द हैं , मानो ये दो भिन्न रंग हैं जिन से स्वर्गस्थ चित्रकार ने रंग देकर मानव-जाति के ( नाना वर्ण पूर्ण ) चित्रपट को पूरा किया है। मस्जिद में उसके स्मरण के लिए अज़ान दी जाती है । मन्दिर में उसकी खोज में हृदय की व्याकुलता प्रकाशित करने के लिए घंटा बजाया जाता है। अतएव अपने धर्म और कर्मकाण्ड के लिए कट्टरपन दिखाना ईश्वर के ग्रन्थ की बातों को बदल देने के सिवा और कुछ नहीं है। चित्र के ऊपर नई रेखा खींचकर हम लोग दिखाते हैं कि चित्रकार ने भूल की है!

यथार्थ में धर्म के अनुसार जज़िया किसी प्रकार भी न्यायसंगत नहीं है। राजनीति के पहलू से देखने से भी जज़िया केवल उसी युग में न्यायसंगत हो सकता है जिस युग में सुन्दर स्त्रियाँ सोने के गहने पहनकर बेखटके एक जगह से दूसरी जगह सही-सलामत जा सकती हैं; परन्तु आजकल जब आपके बड़े-बड़े शहर लूटे जा रहे हैं, तब गाँवों की तो बात ही क्या ? ऐसी हालत में तो जज़िया न्याय के विरुद्ध ही है | उसके सिवा इस भारत में यह एक नया अत्याचार है, और पूरी तरह हानिकारक भी है।

अगर आप खयाल करें कि रिआया के ऊपर जुल्म करने से और हिन्दुओं को डर दिखाकर दबा रखने से ही आपका धर्म प्रमाणित होगा, तो पहले हिन्दुओं के सिरमौर महाराणा राजसिंह से जज़िया वसूल कीजिए । उसके बाद मुझसे वसूल करना कठिन न होगा, क्योंकि मैं तो आपकी सेवा के लिए हरदम हाज़िर हूँ। परन्तु इन मक्खियों और चींटियों को तकलीफ देने में कोई पुरुषार्थ नहीं है।

मेरी समझ में नहीं आता कि आपके कर्मचारी क्यों ऐसे अद्भुत प्रभु भक्त बने हैं कि वे आपको देश की असली अवस्था नहीं बताते, बल्कि उलटे जलती हुई आग को तिनकों से दबाकर छिपाना चाहते हैं|

आपका राजसूर्य गौरव के गगन में कान्ति विकीर्ण करता रहे।

 

Reference:

यदुनाथ सरकार (१९४९). शिवाजी. हिन्दी-ग्रन्थ-रत्नाकर कार्यालय, मुंबई.

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Team Cultural Samvaad

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