Cultural Samvaad| Indian Culture and Heritage
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति। तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः।।9.26।।

पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति। तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः।।9.26।।


श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, कि भक्त यथासाध्य प्राप्त पत्र (पत्ता), पुष्प, फल, जल, आदि, जो भी प्रेमपूर्वक एवं शुद्ध मन से ईश्वर को अर्पण करते है, वह अर्पित की गयी भेंट, भगवान सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं (खा लेते हैं)| इस श्लोक का तात्पर्य है की ईश्वर के सामने कोई भेंट छोटी या बड़ी नहीं होती – भगवान तो केवल भक्ति के भूके हैं| |९.२६|

In the Bhagawad Gita, Lord Krishna tells Arjuna that when a devotee offers a leaf, a flower, a fruit or a little water (whatever is accessible to her or him) with love and a pure mind; Bhagwaan (God) accepts the offering happily. The essence of the couplet is that no offering made to God with bhakti is big or small. |9.26|

Bhagavad Gita

Explore Our Popular Articles on Indian Culture and Heritage