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रक्तबीज का अन्त – देवी माँ की कहानियाँ

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ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी। 

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते।।

माँ अम्बिका एवं माँ काली द्वारा रक्तबीज के वध की कथा भारत की प्राचीनतम एवं प्रचलित कथाओं में से एक है| यह कथा केवल रोचक ही नहीं है वरन मानव मात्र को अपने अन्दर के रक्तबीज को पहचानने एवं उसको पराजित करने का कालातीत पाठ भी पढ़ाती है|

हालांकि, रक्तबीज का प्रसंग अनेकानेक ग्रंथों में पाया जाता है, इस लेख एवं संलग्न विडिओ का आधार दुर्गा सप्तशती नामक प्रसिद्ध ग्रंथ है| दुर्गा सप्तशती मार्कण्डेय पुराण का एक अभिन्न अंग है| भक्त इसे चण्डी या चण्डी पाठ या देवी माहातम्य के नाम से भी जानते हैं| प्रस्तुत वर्णन दुर्गा सप्तशती के आठवें आध्याय में पाया जाता है|

रक्तबीज का अन्त

अनादि काल में देवताओं और असुरों के बीच भयंकर संग्राम हुआ। देवराज इन्द्र की सेना शुम्भ और निशुम्भ की शक्तिशाली सेना से परास्त हो गई| शुम्भ और निशुम्भ समस्त ब्रह्माण्ड पर राज करने लगे। पराजित तथा अधिकारहीन देवताओं ने कैलाश पर्वत पर जाकर माँ पार्वती से सहायता हेतु प्रार्थना की। माता पार्वती ने देवताओं की सहायता के लिए देवी अम्बिका का मनोहर रूप धारण किया।

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तत्पश्चात शुम्भ और निशुम्भ की विशाल सेना से देवी अम्बिका का युद्ध हुआ। उस सेना में रक्तबीज नामक एक शक्तिशाली महा असुर भी था। रक्तबीज का देवी अम्बिका एवं समस्त मातृकाओं से घनगोर संग्राम हुआ। उस धूर्त दानव के पास एक अनोखा वरदान भी था। जैसे ही उसके रक्त की एक भी बूंद पृथ्वी पर गिरती, वैसे ही उसी के समान ही भयानक एवं विशाल एक और रक्तबीज रूपि दानव उत्पन्न हो जाता था। मातृगण उस पर जितना प्रहार करतीं और उसके रक्त की जितनी बूंदें पृथ्वी पर गिरतीं, उतने ही शक्तिशाली रक्तबीज और पैदा हो जाते। यह देखकर देवी अम्बिका ने माँ काली के पास जाकर रक्तबीज का विनाश करने हेतु उनके साथ एक योजना बनायी|

योजना के अनुसार, माँ चण्डिका रक्तबीज पर निरन्तर आघात करने लगीं और देवी चामुण्डा ने अपनी जिह्वा बहुत लम्बी फैला ली। उस विशाल दानव के रक्त की हर बूंद उनकी जिह्वा पर गिरने लगी। रक्त बिंदु से जो भी दैत्य प्रकट होता,  उस विशाल दानव को काली तुरंत ही अपना ग्रास बना लेती। धीरे-धीरे रक्तबीज का सम्पूर्ण रक्त क्षीण हो गया एवं उस भयंकर दानव का अन्त हो गया। उसकी पराजय देख समस्त मातृगण आनन्दित को उठीं एवं देवताओं ने आकर माँ चण्डिका,  माँ काली तथा अन्य मातृकाओं का वन्दन किया।

वास्तव में रक्तबीज हमारे अन्दर का अहंकार है, हमारे अन्दर का लोभ है और हमारे अन्दर का तमस है । जब हम अपने अन्दर के रक्तबीज पर विजय प्राप्त कर लेंगे, तब हम धर्म के मार्ग पर चलने में सक्षम होंगे।

ॐ चामुण्डायै नमः|

महिषासुरमर्दिनी की कहानी पढ़ें और देखें 

Garima Chaudhry Hiranya Citi Tata Topper

Garima Chaudhry

Garima is a corporate leader and the Founder and Editor of Cultural Samvaad. Passionate about understanding India’s ancient 'संस्कृति 'or culture, she believes that using a unique idiom which is native to our land and her ethos, is the key to bringing equitable growth and sustainable change in India.

Deeply interested in Indic Studies, Garima has been a visiting faculty member for over a decade at the Mumbai University and K J Somaiya Institute of Dharma Studies among others. She has taught diploma, graduate and post graduate courses in Development of Religious Thought in India, Hindu Thought and Purakatha, Buddhism and Comparative Mythology among others. She also conducts immersive workshops for various cohorts on appreciating India and her past, her dharmic traditions and her enduring values, stories and symbols.

In her corporate avataar, Garima runs Hiranya Growth Partners LLP, a boutique consulting and content firm based in Mumbai. She is a business leader with over 25 years of experience across Financial Services, Digital Payments and eCommerce, Education and Media at Network18 (Capital18 and Topperlearning), Citibank and TAS (the Tata Group). Garima is an MBA from XLRI, Jamshedpur and an Economics and Statistics Graduate.

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