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विष्णु द्वारा मधु और कैटभ का अन्त | कथा देवी महामाया की

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प्राचीन काल में मधु और कैटभ नामक दो दैत्यों का जन्म हुआ था|  उनके अन्त की रोचक कथा, अनेक पुराणों एवं महाभारत में भी पायी जाती है| इस लेख में हमने मार्कण्डेय पुराण के अन्तर्गत देवी माहात्म्य के पहले अध्याय एवं देवी भागवत पुराण के प्रथम स्कन्ध में संलग्न कथाओं का वर्णन किया है|

भगवती महामाया की अनुकम्पा से विष्णु द्वारा मधु और कैटभ के अन्त की कथा – दुर्गा सप्तशती के प्रथम अध्याय से (मार्कण्डेय पुराण)

बात उस समय कि है जब महाप्रलय के पश्चात, हमारे ब्रह्मांड के जीवन में एक कल्प का अंत हो चुका था| सम्पूर्ण जगत जलमग्न था। भगवान विष्णु शेषनाग की शय्या पर योगनिद्रा में आराम कर रहे थे और ब्रह्माजी उनकी नाभि से निकले कमल पर शान्त भाव से आसीन थे। तभी, विष्णुजी के कानों से निकले मैल से मधु और कैटभ नामक दो असुर उत्पन्न हुए। वे भयंकर असुर ब्रह्माजी का वध करने को आतुर थे| इसी इच्छा से वे उनकी ओर अग्रसर हुए| परेशान ब्रह्माजी ने एकाग्रचित होकर देवी योगनिद्रा का स्तवन किया| वे  महामाया जो जनार्दन की आखों में निवास कर रहीं थीं , अनादि और अनंत हैं और सभी चर-अचर प्राणियों को भ्रमित करती हैं ।

त्वमेव सन्ध्या सावित्री त्वं देवि जननी परा ।
त्वयैतद्धार्यते विश्वं त्वयैतत् सृज्यते जगत् ॥ १.७५॥
त्वयैतत्पाल्यते देवि त्वमत्स्यन्ते च सर्वदा ।
विसृष्टौ सृष्टिरूपा त्वं स्थितिरूपा च पालने ॥ १.७६॥
तथा संहृतिरूपान्ते जगतोऽस्य जगन्मये ।
महाविद्या महामाया महामेधा महास्मृतिः ॥ १.७७॥
महामोहा च भवती महादेवी महेश्वरी ।
प्रकृतिस्त्वं च सर्वस्य गुणत्रयविभाविनी ॥ १.७८॥*

प्रजापति की प्रार्थना से प्रसन्न होकर, वह सर्वशक्तिमान, अजन्मा देवी, नारायण के हृदय एवं इंद्रियों से बाहर निकाल कर ब्रह्माजी के सामने प्रकट हुईं |उन्होंने ब्रह्माजी को आशीर्वाद दिया।

योगनिद्रा से जागने के पश्चात, विष्णुजी ने पांच हजार वर्षों तक मधु और कैटभ के साथ भयंकर युद्ध किया। अंतत: देवी महामाया ने असुरों को मोह में डाल दिया एवं उनको विश्वस्त कर दिया कि वे अजेय हैं। अहंकार के नशे में चूर, उन दैत्यों ने विष्णुजी से कहा- ‘हमसे वर मांगो।’  जगन्नाथ ने मधु और कैटभ से अनुरोध किया कि वे उनके द्वारा नष्ट हो जायें। वे दोनों अभिमानी अपने ही जाल में फंस गए| उन्होंने विष्णुजी से कहा कि वह उनकी हत्या किसी ऐसे स्थान पर करें जहाँ पर जल न हो| तब श्रीहरि ने उनके मस्तक अपनी जंघा पर रख, अपने चक्र से उनके सिर धड़ से अलग कर दिए|मधु और कैटभ का अन्त हो गया| सृष्टि का निर्माण पुनः प्रारंभ हो गया|

Vishnu Kills Madhu and Kaitabha,
Vishnu Battles Madhu and Kaitabha, from a Markandeya Purana, c. 1760. Northern India, Himachal Pradesh, Guler, 18th century. Courtesy: The Cleveland Museum of Art

भगवती योगमाया की अनुकम्पा से विष्णु द्वारा मधु और कैटभ के अन्त की कथा – देवी भागवत पुराण के प्रथम स्कन्ध से 

देवी भागवत पुराण के प्रथम स्कन्ध के छठे से नवें अध्यायों में यह कहानी और विस्तारपूर्वक कही गयी है| मधु और  कैटभ के जन्म की कथा में कोई विशेष अंतर नहीं है| वे दोनों पराक्रमी दैत्य विष्णुजी के कानों के मैल से उत्पन्न होकर उस महासागर में भ्रमण करने लगे| तत्पश्चात उन्होंने एक हज़ार वर्ष तक भगवती देवी की उपासना की जिन्होंने मधु और कैटभ को इच्छा मृत्यु का वरदान देते हुए आश्वस्त किया कि कोई भी देवता और दानव उनका वध करने में सक्षम नहीं होगा| अभिमान में चूर, उन दैत्यों ने ब्रह्माजी पर आक्रमण कर दिया| व्यथित ब्रह्माजी ने शेषनाग की शय्या पर योगनिद्रा में लीन विष्णुजी से सहायता के लिए प्रार्थना की| असफल होने पर उन्होंने भगवती योगमाया का स्तवन किया जिन्होंने हरि को अपनी माया से मुक्त कर दिया| जगन्नाथ ने मधु और  कैटभ से पाँच हज़ार वर्ष तक युद्ध किया| उन्हें परास्त न कर पाने पर,खिन्न होकर, हरि ने देवी की उपासना करी| प्रसन्न देवी ने विष्णुजी के साथ एक योजना बनायी| योजनानुसार, अम्बिका ने उन मतवाले दैत्यों को मोह में डाल दिया| श्रीहरि ने असुरों से कहा – ‘मुझसे इच्छानुसार वर माँगो’। अभिमानी मधु और  कैटभ ने कहा – ‘हम याचक नहीं हैं| हम तो दानवीर हैं| हम ही आप को वर दे देंगे|’ नारायण ने उनसे याचना की  – ‘मेरे हाथों से मृत्यु स्वीकार करो।’ भगवती के माया पाश से मोहित होकर मधु और कैटभ अपनी ही बातों से ठगे गये। भगवान विष्णु ने उन दोनों दैत्यों के मस्तकों को अपनी जांघों पर रखकर, सुदर्शन चक्र से उन्हें काट डाला। तमस रूपी मधु और कैटभ का अस्तित्व समाप्त हो गया|

यह कथा हमें याद दिलाती है कि देवी महामाया का तेज संपूर्ण विश्व में व्याप्त है। वे नित्य, सत-असत स्वरूप देवी हमें अपनी माया रूपी अंधेरे से भ्रमित करती हैं और वे ही नित्य ज्ञान के प्रकाश से हमारा साक्षात्कार करवाती हैं|

*दुर्गा सप्तशती – प्रथम अध्याय (मार्कण्डेय पुराण)

Read and watch the Story of Madhu and Kaitabha in English

Garima Chaudhry Hiranya Citi Tata Topper

Garima Chaudhry

Garima is a corporate leader and the Founder and Editor of Cultural Samvaad. Passionate about understanding India’s ancient 'संस्कृति 'or culture, she believes that using a unique idiom which is native to our land and her ethos, is the key to bringing equitable growth and sustainable change in India.

Deeply interested in Indic Studies, Garima has been a visiting faculty member for over a decade at the Mumbai University and K J Somaiya Institute of Dharma Studies among others. She has taught diploma, graduate and post graduate courses in Development of Religious Thought in India, Hindu Thought and Purakatha, Buddhism and Comparative Mythology among others. She also conducts immersive workshops for various cohorts on appreciating India and her past, her dharmic traditions and her enduring values, stories and symbols.

In her corporate avataar, Garima runs Hiranya Growth Partners LLP, a boutique consulting and content firm based in Mumbai. She is a business leader with over 25 years of experience across Financial Services, Digital Payments and eCommerce, Education and Media at Network18 (Capital18 and Topperlearning), Citibank and TAS (the Tata Group). Garima is an MBA from XLRI, Jamshedpur and an Economics and Statistics Graduate.

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