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२३ मार्च १९३१| सोमवार| शाम ७.१५ बजे| भारत के तीन वीर युवा क्रान्तिकारियों – सरदार भगत सिंह, शिवराम हरिराम राजगुरु और सुखदेव थापर को ब्रिटिश साम्राज्य ने फांसी दे दी|
उस काल रूपी संध्या में लाहौर के सेंट्रल जेल के आसपास मौजूद व्यक्ति, जेल के अंदर से आ रही निडर वाणियों में इंकलाब जिंदाबाद के अगणित, दिल दहलाने वाले नारों के साक्षी बने|
जिस अन्यायपूर्ण और क्रूर आदेश के तहत उन्हें फांसी के फंदे पर चढ़ाया गया था, वह कुख्यात लाहौर षडयंत्र मामले की तहकीकात कर रहे, विशेष ट्राइब्यूनल द्वारा पारित किया गया था।
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को भारतीय दंड संहिता की धारा १२१ के तहत, अंग्रेजों के राजा के साथ युद्ध करने, अथवा उनके खिलाफ़ युद्ध के लिए उकसाने, अथवा उनके साथ युद्ध करने का प्रयास करने के लिए दोषी ठहराया गया था। ट्राइब्यूनल ने उन्हें लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने हेतु जॉन सॉन्डर्स की हत्या करने के मामले में भी दोषी पाया था|
इस क्रूर अन्याय ने उन अमर शहीदों की नश्वर वाणियों को तो मौन कर दिया था, परंतु उन्होंने अपने साथियों के साथ निर्भयतापूर्वक जिस युद्ध की उद्घोषणा की थी, वह तब तक समाप्त नहीं हुआ, जब तक १९४७ में भारत को स्वतंत्रता नहीं मिली।
हर वर्ष, २३ मार्च को शहीद दिवस पर एक कृतज्ञ राष्ट्र, उन वीर युवकों के अदम्य साहस और सर्वोच्च बलिदान को याद कर, उन्हें अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता है|
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु–ए–कातिल में है?
जय हिन्द!
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