भारत सदियों से कलाकारों और शिल्पकारों की भूमि है। कोलम तमिलनाडु और आस-पास के क्षेत्रों की एक पारंपरिक लोक कला है| प्रतिदिन सुबह के समय, महिलायें अपने घरों के बाहर, चावल के आटे का उपयोग कर, अपने हाथों से धरती पर उत्कृष्ट आकृतियाँ बना, अपने घर-आँगन को सुसज्जित करती हैं| कोलम आमतौर पर ज्यामितीय आकार या पुष्पों के आकार में बनायी जाती हैं और इन्हें शुभ माना जाता है| बिन्दुओं और रेखाओं से रचित सुंदर कोलम आकृतियों का विशेष महत्व है तथा उनके गणितीय लय पर शोध भी किया जा रहा है। यह कला न केवल व्यक्तिगत अपितु पारिवारिक अभिव्यक्ति का भी एक माध्यम भी हैं| कई विशेष डिज़ाइन एक पीढ़ी , अगली पीढ़ी को पारिवारिक धरोहर के रूप में सिखाती है| कोलम बनाने की प्रक्रिया की तुलना ध्यान लगाने या मनन करने से की जा सकती है। चावल का आटा चींटियों और पक्षियों के लिए भोजन के रूप में कार्य करता है|
तमिल माह मार्गजी में कोलम बनाने की परंपरा अपनी चरम सीमा पर होती है| मार्गजी समाप्त होने के पश्चात पोंगल का पर्व मनाया जाता है जिसमे कोलम का विशेष महत्व है। आकर्षक, शुभ एवं उपयोगी कोलम , भारत की जीवंत धरोहर का एक अभिन्न अंग है|
चित्र सौजन्य – Karpagam Kalyanaraman
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