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मृत्यु, अंत्येष्टि एवं पुत्री – भारतीय पृष्टभूमि पर कुछ विचार

मृत्यु क्या है?

श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था कि मानव देह वस्तुतः आत्मा के लिए मात्र एक आवरण स्वरूप ही है | मृत्यु का अभिप्राय केवल इतना ही है, कि आत्मा अपना पुराना वस्त्र त्याग, एक नवीन वस्त्र धारण करती है| यह नवीन आवरण अथवा पुनर्जन्म, आत्मा के संचित कर्मों पर निर्भर होता है| जो पीछे रह जाता है, वो कुछ भी नहीं है – केवल एक जीर्ण शरीर है जिसको पुनः उन पञ्च तत्वों में विलीन होना है जिनसे उसका निर्माण हुआ था|

Manikarnika Ghats, Varanasi
Manikarnika Ghats, Varanasi
Image Courtesy: Columbia.edu

मृत्यु  के बाद क्या है?

शायद यह सत्य है कि मृत्यु के बाद, आत्मा तो अपने पथ पर चलती ही जाती है|  परंतु विडम्बना यह है कि जो पीछे रह जाते हैं, वे इस सत्य को जानते हुए भी उसे पूर्णतया स्वीकार नहीं कर पाते| प्रियजन के पार्थिव शरीर से भावनाओं का गहरा संबंध होता है और पञ्च भूतों में इसका समावेश मानवीय जीवन का अन्तिम संस्कार है| शायद इसीलिए, अनादि काल से भारतीय यह मानते आ रहे हैं कि संतान का यह कर्तव्य भी है एवं अधिकार भी है, कि वह अपने माता-पिता आदि को सम्मान से, श्रद्धा से, प्रेम से एवं यथोचित रीति से विदा करे और इस अन्तिम संस्कार को पूर्ण करने में अपना योगदान करे|

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यथोचित रीति क्या है?

प्राचीन भारत में पार्थिव शरीर का दाह-संस्कार करने एवं दफ़नाने के, दोनों के ही प्रमाण प्राप्त होते हैं। ऋग्वेद के दसवें मण्डल के पंद्रहवें सूक्त में भी अग्निदग्धा एवं अनग्निदग्धा दोनों शब्द विद्यमान हैं| इस लेख के लिए यह कहना पर्याप्त होगा कि दोनों रीतियों का प्रमाण होने पर भी, यह सर्वविदित है कि दाह-संस्कार को ही भारतीय परिवेश में अधिकांश स्थितियों में उचित माना गया है|

Funeral Death
Funeral of a Brahmin
Image Courtesy: Columbia.edu

दाह-संस्कार कौन करे? पुत्र ही क्यों ? पुत्री क्यों नहीं?

यह प्रश्न इस लेख का मूल विषय है| साधारणतः प्रथा के अनुसार ज्येष्ठ पुत्र ही दाह संस्कार करता है| यदि ज्येष्ठ पुत्र वहाँ नहीं है, तो अन्य पुत्र, पति, कुटुम्ब का कोई व्यक्ति एवं सगोत्र व्यक्ति भी मुखाग्नि दे सकते हैं| पुत्री के पुत्र को भी यह अधिकार दिया गया है| अपवाद के रूप में पत्नी एवं पुत्री को भी दाह-संस्कार का अधिकार है|

इस बात पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि पुत्री के अपने माता-पिता को मुखाग्नि देने के अधिकार को प्रायः एक अपवाद के रूप में ही देखा गया है| शायद यही कारण है कि भारत की इस पुण्यभूमि पर माता-पिता मुखाग्नि देने वाले एक पुत्र की कामना करते नहीं थकते और कहीं-कहीं आज भी भ्रूण हत्या जैसा घोर अपराध करने से भी नहीं सकुचाते|

भारत का इतिहास इस बात का गवाह है कि सनातन धर्म एवं भारत में जन्मे हर अन्य धर्म की यह विशेषता रही है की वह समय के साथ, अपने परिवेश में पनपी रूढ़िवादी प्रथाओं एवं सोच को बदलने में पूर्णतः सक्षम है| क्या अब समय नहीं आ गया है कि हम अपने आप से प्रश्न करें और पूछें की पुत्र और पुत्री के स्नेह में क्या अंतर है? यदि पुत्री सम्मान से, श्रद्धा से, प्रेम से एवं यथोचित रीति से अपने माता-पिता का अंतिम संस्कार करती है और उन्हें कंधा देती है, तो क्या आत्मा की सद्गति के पथ में कोई बाधा आ सकती है? क्या इक्कीसवीं सदी में भी हम अपनी पुत्री को अपने अभिभावक के प्रति अपनी निष्ठा दिखाने के इस  अधिकार और कर्तव्य से वंचित रखेंगे ? हम कब तक एक पुत्री को आभास कराते रहेंगे कि वह अपने अभिभावकों की सद्गति में एक रोड़ा  है या सद्गति के लिए पर्याप्त नहीं है?

समय तीव्र गति से बदल रहा है| विगत वर्षों में गाँवों से लेकर शहरों तक में पुत्री, बहन एवं पत्नी द्वारा दाह संस्कार के गिने-चुने उदाहरण मिलने लगे हैं| भारत के पूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर पाकिस्तान में प्रताड़ित श्री सरबजीत सिंह को मुखाग्नि देने वाली स्त्रियाँ ही थीं| यह उदाहरण पर्याप्त नहीं है| यह बदलाव की चंद बूंदें हैं| इन बूंदों को एक लहर का रूप लेना होगा|

इस अवश्यंभावी एवं आवश्यक परिवर्तन का एक हिस्सा बनिए| फिर से सिद्ध करिए कि भारत सदैव ही विश्व का आध्यात्मिक गुरु रहा है| अपनी पुत्री को मुखाग्नि देने का अधिकार दीजिये|

 

Gita
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Garima Chaudhry Hiranya Citi Tata Topper

Garima Chaudhry

Garima is a corporate leader and the Founder and Editor of Cultural Samvaad. An Indic Studies enthusiast, she is a guest faculty member at the Mumbai University and K J Somaiya Institute of Dharma Studies among other institutes . Passionate about understanding India’s ancient 'संस्कृति 'or culture, Garima believes that using a unique idiom which is native to our land and her ethos, is the key to bringing sustainable growth and change in India.

In her corporate avataar, Garima runs Hiranya Growth Partners LLP, a boutique consulting and content firm based in Mumbai. She is a business leader with over two decades of experience across Financial Services, Digital Payments and eCommerce, Education and Media at Network18 (Capital18 and Topperlearning), Citibank and TAS (the Tata Group). Garima is an MBA from XLRI, Jamshedpur and an Economics and Statistics Graduate.

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